भारत में सतत विकास (सस्टेनेबिलिटी) एक ऐसा विषय है, जो देश की बढ़ती जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, और पर्यावरणीय संकट के चलते अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है।
इस लेख में, हम जल संरक्षण और पर्यटन को सतत विकास के परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास करेंगे।
भारत में जल संकट और इसकी गंभीरता
जल संकट भारत के लिए कोई नई समस्या नहीं है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार, भारत में भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। इसके परिणामस्वरूप कई राज्यों में जलस्तर तेजी से घट रहा है। 2020 की नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया कि भारत का 70% जल प्रदूषित है, और 2030 तक देश में जल की मांग उपलब्धता से दोगुनी हो सकती है।
पर्यटन: विकास का साधन या समस्या?
पर्यटन भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन इन इंडियन टूरिज्म एंड हॉस्पिटैलिटी (FAITH) के अनुसार, पर्यटन क्षेत्र 2019 में भारत के GDP का 9.2% योगदान देता था। हालांकि, अंधाधुंध पर्यटन के कारण प्राकृतिक संसाधनों, विशेषकर जल, पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
जल संरक्षण और पर्यटन का सामंजस्य: एक सतत समाधान
जल संरक्षण और पर्यटन को जोड़ने की प्रक्रिया में कुछ ऐसे उपाय और योजनाएँ अपनाई जा सकती हैं, जो न केवल पर्यावरण को संरक्षित करती हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाती हैं।
1. झीलों और तालाबों का संरक्षण
राजस्थान में बांसवाड़ा जैसी जगहों पर झीलें न केवल स्थानीय लोगों की जल आवश्यकता पूरी करती हैं, बल्कि पर्यटन का भी मुख्य आकर्षण हैं। प्राकृति कल्याण फाउंडेशन जैसे संगठन जल निकायों की सफाई और संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
2. वाटर टूरिज्म का विकास
वाटर टूरिज्म यानी जल आधारित पर्यटन, जैसे कि बोटिंग, कैम्पिंग, और झीलों के किनारे इको-टूरिज्म, स्थानीय रोजगार उत्पन्न कर सकते हैं। केरल का बैकवाटर टूरिज्म और उदयपुर की झीलें इस दिशा में उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
3. पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियाँ
राजस्थान के बावड़ी और जोहड़ जैसे पारंपरिक जल प्रबंधन के तरीकों को पर्यटन के माध्यम से पुनर्जीवित किया जा सकता है। इससे न केवल जल संरक्षण होगा, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी संरक्षित रहेगी।
4. जागरूकता अभियान
पर्यटकों और स्थानीय निवासियों को जल संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित करना अनिवार्य है।
राजस्थान: जल संरक्षण और पर्यटन के क्षेत्र में अग्रणी राज्य
राजस्थान, जहां जल संकट हमेशा से एक चुनौती रहा है, ने कई सफल पहलें की हैं। बांसवाड़ा, जिसे "झीलों का शहर" कहा जाता है, अपनी जल निकायों की सुंदरता और संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।
इसके अलावा, जैसलमेर का गड़ीसर झील और अलवर का सिलिसेढ़ झील जैसे पर्यटन स्थल इस बात के उदाहरण हैं कि कैसे पर्यटन और जल संरक्षण एक साथ कार्य कर सकते हैं।
जल संरक्षण के लिए सरकार और निजी संगठनों की पहल
1. जल शक्ति अभियान
सरकार का यह कार्यक्रम जल संरक्षण और भूजल पुनर्भरण पर केंद्रित है।
2. निजी क्षेत्र का योगदान
ताज ग्रुप और ओबेरॉय जैसे होटल्स ने वाटर रिसाइकलिंग और सस्टेनेबल टूरिज्म पर ध्यान केंद्रित किया है।
भविष्य की राह: सतत विकास के लिए कदम
- नवाचार और प्रौद्योगिकी का उपयोग: जल संरक्षण में आधुनिक तकनीकों जैसे कि GIS मैपिंग, ड्रोन सर्वेक्षण, और स्मार्ट इरिगेशन सिस्टम का उपयोग।
- नीतियों का क्रियान्वयन: सतत पर्यटन और जल संरक्षण के लिए सख्त सरकारी नीतियाँ लागू करना।
- सामाजिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को जल संरक्षण और पर्यटन से जोड़ना।
निष्कर्ष
भारत में सतत विकास तभी संभव है, जब जल संरक्षण और पर्यटन को संतुलित तरीके से जोड़ा जाए। प्राकृति कल्याण फाउंडेशन जैसे संगठनों की पहल इस दिशा में प्रेरणादायक है। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में, यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करें और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखें।
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